आपले स्वागत आहे!

मनाचे श्लोक


|| श्रीहरि: ||
मनाचे श्लोक ( मराठी )
|| श्रीसमर्थ रामदासस्वामीविरचित

क्रियेवीण नानापरी बोलिजेतें |
परी चीत दुश्र्चीत तें लाजवीतें |
मना कल्पना धीट सैराट धावे |
तया मानवा देव कैसेनि पावे || १०४ ||
विवेकें क्रिया आपुली पालटावी |
अती आदरें शुध क्रिया धरावी |
जनीं बोलण्यासारिखें चाल बापा |
मना कल्पना सोडि संसारतापा || १०५ ||
बरी स्नानसंध्या करी एकनिष्ठा |
विवेकें मना आवरी स्नानभ्रष्टा |
दया सर्व भूतीं जया मानवाला |
सदा प्रेमळु भक्तिभावें निवाला || १०६ ||
मना कोपआरोपणा ते नसावी |
मना बुधि हे साधुसंगीं वसावी |
मना नष्ट चांडाळ तो संग त्यागीं |
मना होइ रे मोक्षभागीं विभागी || १०७ ||
सदा सर्वदा सज्जनाचेनि योगें |
क्रिया पालटे भक्तिभावार्थ लागे |
क्रियेवीण वाचाळता ते निवासी |
तुटे वाद संवाद तो हीतकारी || १०८ ||
जनीं वाद वेवाद सोडूनि द्दावा |
जनीं सुखसंवाद सूखें करावा |
जगीं तो चि तो शोकसंतापहारी |
तुटे वाद संवाद तो हीतकारी || १०९ ||
तुटे वाद संवाद त्यातें म्हणावें |
विवेकें अहंभाव यातें जिणावें |
अहंतागुणें वाद नाना विकारी |
तुटे वाद संवाद तो हीतकारी || ११० ||
हिताकारणें बोलणें सत्य आहे |
हिताकारणें सर्व शोधूनि पाहें |
हिताकारणें बंड पाषांड वारी |
तुटे वाद संवाद तो हीतकारी || १११ ||

यावर आपले मत नोंदवा