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Archive for ऑक्टोबर 21, 2011

श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रम्

एको नैक: सव: क: किं यत्तत्पदमनुत्तमम् |
लोकबन्भुर्लोकनाथो माधवो भक्तवत्सल: ||९१||

सुवर्णवर्णो हेमाद ड्.गो वराड्.श्च न्दनाड्.दी|
विरहा विषम:शून्यो घृताशीरचलश्चल: ||९२||

अमानी मानदो मान्यो लोकस्वामी त्रिलोकधृक् |
सुमेधा मेधजो धन्य: सत्यमेधा धराधर: ||९३||

तेजोवृषो द्दुतिधर: सर्वशस्त्राभृतां वर: |
प्रगहो निग्रहो व्यग्रो नैकश्रु ड्.गो गदाग्रज: ||९४||

चतुर्मुर्तिचतुर्बाहुचतु र्व्यूह श्चतुर्गति: |
चतुरात्मा चतुर्भावश्चतुर्वेदविदेकपात् ||९५||

समावर्तो S निवृत्तात्मा दुर्जयो दुरतिक्रम: |
दुर्लभो दुर्गमो दुर्गो दुरावासो दरारिहा ||९६||

शुभा ड्.गो लोकसार ड्.ग: सुतन्तुस्तन्तुवर्धन: |
इन्द्रकर्मा महाकर्मा कृतकर्मा कृतागम: ||९७||

उध्दव: सुन्दर: सुन्दो रत्ननाभ: सुलोचन: |
अर्को वाजसन: श्रु ड्.गी जयन्त: सर्वविज्जयी ||९८||

सुवर्णबिन्दुरक्षोभ्य: सर्ववागीश्वरेश्वर: |
महाह्रदो महागर्तो महाभूतो महानिधि: ||९९||

कुमुद: कुन्दर: कुन्द: पर्जन्य: पावनो S निल |
अमृताशो S मृतवपु: सर्वज्ञ: सर्वतोमुख: ||१००||